आत्मिक स्नेह का प्रतीक रक्षाबन्धन पर्व
कोरबा 21 अगस्त (आरएनएस)। पवित्रता, प्रेम, मधुरता, आत्मिक स्नेह का प्रतीक पावन पर्व, रक्षाबन्धन बड़े ही उमंग उत्साह खुशहाली के साथ मनाया जाता है। पवित्रता का प्यारा बंधन, भाई बहन के बचपन की याद दिलाता, जीवन रक्षा का सहारा रक्षा बंधन, सर्व प्रिय, सर्व में एक आलौकिक दिव्य प्रवाह उत्पन्न करने वाला, यह रक्षा बंधन का पर्व अपने आप में शांति प्रिय है। रक्षा बंधन के पर्व को पुण्य प्रदायक पर्व भी कहा जाता है। यह त्यौहार श्रावण मास में मनाते हैं, जबकि सत्संग, उपासना, कंवर यात्रा, पूजा अर्चना का वातावरण होता है। यह सब बातें इस बात का द्योतक है कि रक्षा बंधन एक धार्मिक उत्सव है। जिसका संबंध जीवन में श्रेष्ठता एवं निर्विकारिता से है। इसलिये इस पर्व को विषतोडक़ पर्व भी कहा जाता है। इसके बाद ही जन्माष्टमी को सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी कृष्ण जन्म होता है। जो कि संकेत देता है कलियुगी अधर्म के संसार की समाप्ति और सतयुगी स्वर्णिम संसार के उदय की वेला का। कहते हैं इन्द्रणी ने जब इन्द्र को यह रक्षा सूत्र बांधा तो इन्द्र ने अपना खोया हुआ स्वर्ग का स्वराज्य प्राप्त कर लिया। बहन यमुना ने यम को रक्षा सूत्र बांध कर काल पर विजय का प्रतीक बतलाया है। एक ही मंदिर में पती पत्नी ईश्वर की आराधना करते हैं कि तुम मात-पिता हम बालक तेरे, अर्थात् आत्मिक संबंध में वे आपस में भाई भाई हैं। वैसे रक्षा सूत्र ब्राह्म्ण अपने जजमानों को भी बांधते हैं, जोकि आत्म स्मृति और पवित्रता का ही प्रतीक है। सृष्टि रंगमंच पर पार्ट बजाने वाले, विश्वपिता के हम सभी रूहानी बच्चे आपस में भाई-भाई हैं। गीता ज्ञान के अनुसार आत्मा एक पार्टधारी ज्योति बिन्दु स्वरूप है, न नर है और न ही मादा है। बेहद विश्व-परिवार से जोडऩे वाला, एक परमपिता की याद द्वारा एकता की माला में पिरोने वाला, उमंग उत्साह तथा खुशी की खुराक से निरोगी और दीर्घायु बनाने वाला यह प्यारा रक्षाबंधन हम सबके लिये अमूल्य ईश्वरीय उपहार है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुगल शासक हूंमायु ने भी राजमाता कर्णावती द्वारा भेजी गई राखी को स्वीकार किया और सम्मान दिया था। पवित्र धागों में असीम बल समाया हुआ है। भाई बहन का स्नेह स्वप्न और संकल्प तक होता है। वे बचपन साथ खेलते खाते आपस में मारपीट भी करते लेकिन कहीं भी विकारों की बदबू नहीं होती। देहिक दृष्टि वृत्ति नहीं होती।कच्चे धागों में कितनी शक्ति है कि कलाई में साल भर तक उस असीम प्यार की याद दिलाते जहांॅ एक कोख में पले पुसे, साथ खेले, आमोद प्रमोद किये, अब कितनी दूरी होने के बाद भी दूरियों को कम करता यह प्यारा पर्व खीच लेता है अपने भाई को बहना के पास। सब काम छोड़ कदम चल पड़ते हैं भाई के दूर दूर कहीं अपनी बहना से मिलन मनाने। आज के दिन हर भाई बहना के लिये सदा सुखी जीवन की कामना करते हैं और प्यारी बहना का कहना ही क्या? प्रात: काल से ही, रंग बिरगें धागों के साथ थालियों को ले…. ना जाने कितना असीम प्यार दिल में संजोये कदम चल पड़ते हैं, उस प्यारे भाई की खोज में, वह क्यों न एक नवजात शिशु ही हो। गोद में भी उसे बिठा, रक्षा की कामना करते हुए, उसके हाथ में रक्षा सूत्र बांध देती है। रक्षा बंधन वास्तव में पवित्रता का पर्व है, जिसमें मानवीय मूल्यों के उत्कर्ष की सम्पूर्ण संभावनायें हैं। जहॉं पवित्रता है, वहॉं अहिंसा, सदाचार माधुर्य, प्रेम, सद्भावना स्वयं ही प्रकट होने लगते हैं। श्रेष्ठता, दिव्यता एवं महानता के चरम लक्ष्य की ओर मानव उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। इसलिये रक्षाबंधन का त्यौहार केवल अपने तक ही सीमित न होकर सारे विश्व में, भाईचारा पवित्रता का संदेश लेकर आया है। वर्तमान समय परमपिता परमात्मा शिव द्वारा सिखलाये जा रहे सहज राजयोग एवं दिव्य शिक्षाओं का पालन करते हुए हम सब मन-वचन-कर्म और स्वप्न में भी पूर्ण पवित्रता को अपनायें। रहमदिल बनकर, पवित्र भव, योगी भव, को याद करते हुए, दृढ़ संकल्प के साथ रक्षा सूत्र को कलाई पर बांधें।